होली एक पावन पर्व है, जो फूहड़ता और अश्लीलता का त्यौहार कभी नहीं रहा है, सदियों से हमारी पौराणिक कथाओं में प्रचलित इस पवित्र त्यौहार को आज भी ग्रामीण देहात क्षेत्र में बड़े अदब एवं अगाध भक्ति व श्रद्धा भाव से मनाते हैं। हम सब को भी होली के इस त्यौहार के पीछे छिपे रहस्य को जानने के साथ ही मनाना चाहिए।
हमारे भारत वर्ष में सदियों से परम्परा रही है कि हम सभी जाति, धर्म और भाषा को भूलकर हर त्यौहार मानते है व भाईचारा क़ायम करने का प्रयास करते है, हमारे हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई मान्यता रहस्य जरूर है। ऐसे ही होली के त्यौहार में भी मान्यता है कि हिरणाकश्यप की बहन होलिका फाल्गुनी शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के ही दिन उन्हीं के भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि स्नान करने बैठ गयी थी। कहा जाता है कि प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त थे और हिरणाकश्यप विष्णु के विरोधी थे, इसी कारण प्रह्लाद को जलाने के लिये उनकी ही बुआ होली भाई हिरणाकश्यप के आदेश से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि स्नान करने लगी। होली तो जल गयी परन्तु प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ। आज भी उन्हीं की याद में हम होलिका दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत बताते है और इस त्यौहार को मनाते हैं। परंतु यक्ष प्रश्न यह उठता है कि आख़िर होलिका में इतनी ही बुराई थी तो क्यों जब होली जलाने की परंपरा निभाते वक्त गांव का ही एक गरीब आदमी जलती हुई होली लेकर भागता है, होली को बचाने का प्रयास करता है, वंहा उपस्थित लोग उसे बाडुलिये से मारते हैं और वो होली को बुझाने बचाने का प्रयास करता है?
आखिर क्यों महिलाएं सूर्यास्त से पहले ही होली की आग को बुझाने के लिए अपने घरों से मटके घड़े पानी के लेकर दौड़ पड़ती है? आखिर क्यों तीसरे दिन ही (जमरा) तीसरे की रस्म को पूरा करती हैं? और भद्दी भद्दी गालियां होली जलाने में शामिल लोगो को देते हुए गांव में भ्रमण करती हैं? आखिर क्यों सातवें के दिन गोरनी सप्तमी का कार्यक्रम पवित्र मन से आयोजित करती हैं। दशमे से लगाकर तेरहवें दिन तक लगातार कार्यक्रम आयोजित कर होली के त्यौहार को मनाते हैं? पूरे तेरह दिन तक घर में सूतक मनाते हैं क्या कारण है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे पूर्वजों ने इस पवित्र त्यौहार को हमारे दिल दिमाग में जिन्दा रखने के लिए ही इस कार्यक्रम को बड़ी ही श्रद्धा भाव से मनाया हो और एक अबला नारी को यूं दहन होने से बचाने के लिए हमें कोई सन्देश दिया।
हम इस आधुनिक दुनिया की चकाचौंध में यह सब भूल गये कि हमारा भारत का संविधान नारी शक्ति को आगे बढ़ाने की पैरवी करता है। हम महिला दिवस पर महिलाओं के सशक्तिकरण की बड़ी बड़ी डींगे हांकते नहीं थकते और एक निर्बल अबला नारी जो कि राज्य सत्ता व आपसी कलह कूल की भेंट चढ़ चुकी होलिका के दहन को लेकर इस पवित्र त्यौहार को फूहड़ता हुडंगता की भेंट चढ़ा चुके हैं। मेरा मानना है कि नारी की रक्षा के लिए हम सब को मिलकर यह प्रण करना होगा कि कभी भी होलिका की कहानी इस देश में न दोहराई जाये और राजसत्ता व आपसी झगड़े में किसी अबला नारी को यूं ही नहीं जलाया जाये।